Dawat-e-Tauheed

क्या इस्लाम किसी इंसान को क़त्ल करना सिखाता है? जनिये हकीक़

سूरہ مائدہ آیت 32 | सूरह माइदा आयत 32: इस्लाम का शांति का संदेश | Islam’s Message of Peace

सूरह माइदा आयत 32: इस्लाम का शांति का संदेश

“इसलिए हमने बनी इसराइल पर लिख दिया कि जो व्यक्ति किसी को बिना वजह, यानी बिना उसके किसी के कातिल होने या जमीन में बिगाड़ फैलाने के, मार डाले, तो मानो उसने सारे लोगों को मार डाला। और जो व्यक्ति किसी की जान बचाए, तो मानो उसने सारे लोगों को जिंदा कर दिया।”
(सूरह माइदा, आयत 32)

ये कुरान की एक बहुत खास आयत है जो इंसान की जिंदगी की कीमत और उसकी हिफाजत के बारे में बताती है। कुछ लोग, खासकर हमारे हिंदू भाई, ये सोचते हैं कि इस्लाम मारने-काटने की बात सिखाता है। ये लेख इस आयत की रोशनी में इस्लाम का शांति और प्यार का संदेश आसान शब्दों में समझाएगा। हम कुरान, हदीस (पैगंबर साहब की बातें) और खुलफा-ए-राशिदीन (पैगंबर साहब के बाद के बड़े नेता) के कामों से इसकी सच्चाई दिखाएंगे ताकि गलतफहमी दूर हो और इस्लाम का असली चेहरा सामने आए।

आयत का संदेश: जिंदगी की कीमत

ये आयत बताती है कि एक इंसान की जिंदगी बिना वजह लेना, जैसे बिना उसके कातिल होने या बहुत बड़ा गुनाह करने के, सारे इंसानों को मारने जितना बड़ा गुनाह है। और अगर कोई एक इंसान की जान बचाता है, तो ये ऐसा है जैसे उसने सारी इंसानियत को बचा लिया। ये आयत बनी इसराइल (यहूदी) के लिए आई थी, लेकिन इसका संदेश हर इंसान और हर जमाने के लिए है।

इस आयत से साफ है कि इस्लाम में किसी को मारना सिर्फ दो हालत में जायज है:

  • अगर कोई कातिल हो: अगर कोई किसी का कत्ल करता है, तो अदालत उसे सजा दे सकती है।
  • अगर कोई जमीन में बिगाड़ फैलाए: जैसे आतंक फैलाने वाले या बहुत बड़े गुनाह करने वालों को सजा दी जा सकती है।

इसके अलावा किसी की जान लेना सख्त मना है। ये आयत बताती है कि हर इंसान की जिंदगी अल्लाह की दी हुई अमानत है और उसे बिना वजह छूना बहुत बड़ा गुनाह है।

हदीस से सबूत

पैगंबर साहब ने भी इंसान की जिंदगी की हिफाजत को बहुत अहम बताया। एक मशहूर हदीस में उन्होंने कहा:

“वो इंसान पूरा ईमानवाला नहीं है, जब तक उसका पड़ोसी उसके नुकसान से महफूज न हो।”
(सही बुखारी)

इसका मतलब है कि इस्लाम न सिर्फ मारने-काटने को गलत मानता है, बल्कि किसी को छोटा-मोटा नुकसान पहुंचाने को भी पसंद नहीं करता। एक दूसरी हदीस में पैगंबर साहब ने कहा:

“जो शख्स किसी गैर-मुसलमान को मार दे, जो हमारे मुल्क में अमन से रहता हो, वो जन्नत की खुशबू भी नहीं सूंघेगा।”
(सही बुखारी)

ये हदीस बताती है कि इस्लाम गैर-मुसलमानों की जिंदगी और हक की भी उतनी ही इज्जत करता है, जितनी मुसलमानों की।

खुलफा-ए-राशिदीन के काम

खुलफा-ए-राशिदीन ने अपनी जिंदगी और हुकूमत से इस आयत के संदेश को अमल में दिखाया। कुछ मिसालें देखिए:

  • हजरत अबू बकर: हजरत अबू बकर ने अपनी हुकूमत में इंसाफ को बहुत मजबूत किया। उन्होंने कुछ लोगों के खिलाफ जंग की, जो इस्लामी मुल्क का सिस्टम तोड़ रहे थे। लेकिन आम लोगों और गैर-मुसलमानों की हिफाजत को हमेशा यकीनी बनाया।
  • हजरत उमर: हजरत उमर इंसाफ के लिए बहुत मशहूर थे। एक बार एक गैर-मुसलमान ने उनके सामने अपनी शिकायत रखी, तो उन्होंने उसे पूरा इंसाफ दिया। उन्होंने गैर-मुसलमानों के हक और उनके मंदिरों की हिफाजत के लिए खास हिदायतें दीं। उनका एक मशहूर फरमान था:
    “उनके जान और माल की हिफाजत करो, क्योंकि वो हमारे जिम्मे हैं।”
  • हजरत उस्मान: हजरत उस्मान ने अपने दौर में अमन को बढ़ाया। उनके समय में इस्लामी मुल्क की सरहदें बढ़ीं, लेकिन गैर-मुसलमानों के साथ किए वादों का सख्ती से पालन किया गया। उन्होंने कभी बिना वजह खून बहाने की इजाजत नहीं दी।
  • हजरत अली: हजरत अली ने मुश्किल हालात में भी इंसाफ को बरकरार रखा। एक बार जब उनके कातिल को पकड़ा गया, तो उन्होंने हिदायत दी कि उसे तकलीफ न दी जाए और अच्छा खाना दिया जाए। ये इस आयत के संदेश की बड़ी मिसाल है कि इंसान की जिंदगी की इज्जत हर हाल में करनी चाहिए।

इस्लाम और गैर-मुसलमानों का रिश्ता

कुछ लोग सोचते हैं कि इस्लाम गैर-मुसलमानों के साथ सख्ती सिखाता है, लेकिन ये गलत है। कुरान में अल्लाह कहते हैं:

“अल्लाह तुम्हें नहीं रोकता कि तुम उन लोगों से अच्छा बर्ताव और इंसाफ करो, जो तुमसे तुम्हारे दीन की वजह से न लड़े और न तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाला।”
(सूरह मुमतहिना, आयत 8)

ये आयत साफ बताती है कि गैर-मुसलमानों से अच्छा बर्ताव और इंसाफ करना इस्लाम की तालीम है। पैगंबर साहब ने अपनी जिंदगी में गैर-मुसलमानों के साथ शांति से बर्ताव किया। मिसाल के तौर पर, सुलह-ए-हुदैबिया का समझौता और मदीना के यहूदी कबीलों के साथ वादे इसकी मिसाल हैं।

गलतफहमियों का जवाब

कुछ लोग जिहाद को गलत समझते हैं और उसे मारने-काटने से जोड़ते हैं। जिहाद का मतलब है जुल्म और बिगाड़ को रोकने के लिए मेहनत करना। कुरान में साफ है कि जिहाद सिर्फ अपनी हिफाजत के लिए या जुल्म करने वालों के खिलाफ जायज है। जिहाद में भी बच्चों, औरतों, बूढ़ों या निहत्थे लोगों को नुकसान पहुंचाना सख्त मना है।

पैगंबर साहब ने एक हदीस में कहा:

“किसी बूढ़े, बच्चे या औरत को मत मारो।”
(सुनन अबू दाऊद)

ये हिदायत बताती है कि इस्लाम जंग में भी इंसानों की जिंदगी की हिफाजत को सबसे ऊपर रखता है।

नतीजा

सूरह माइदा की आयत 32 इस्लाम के शांति और इंसानियत के संदेश की बड़ी मिसाल है। ये आयत हर इंसान को बताती है कि जिंदगी अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है और उसकी हिफाजत हर शख्स की जिम्मेदारी है। हदीस और खुलफा-ए-राशिदीन के कामों से साफ है कि इस्लाम मुसलमानों के साथ-साथ गैर-मुसलमानों की जान और हक की भी हिफाजत करता है।

हम उम्मीद करते हैं कि ये लेख हमारे हिंदू भाइयों और दूसरों की गलतफहमियां दूर करेगा। इस्लाम शांति, प्यार और भाईचारे का मजहब है, और इसका संदेश सारी इंसानियत के लिए रहमत है।

“और हमने तुम्हें सारे जहान के लिए रहमत बनाकर भेजा।”
(सूरह अंबिया, आयत 107)
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